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Showing posts from September, 2016

लैंसडाउन, पौड़ी गढवाल । Lansdowne Pauri Garhwal

लैंसडाउन   उत्तराखण्ड  राज्य (भारत) के  पौड़ी गढ़वाल  जिले में एक छावनी शहर है। उत्तराखंड के गढ़वाल में स्थित लैंसडाउन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1706 मीटर है। यहां की प्राकृतिक छटा सम्मोहित करने वाली है। यहां का मौसम पूरे साल सुहावना बना रहता है। हर तरफ फैली हरियाली आपको एक अलग दुनिया का एहसास कराती है। दरअसल, इस जगह को अंग्रेजों ने पहाड़ों को काटकर बसाया था। खास बात यह है कि दिल्ली से यह हिल स्टेशन काफी नजदीक है। आप 5-6 घंटे में लैंसडाउन पहुंच सकते हैं। अगर आप बाइक से लैंसडाउन जाने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आनंद विहार के रास्ते दिल्ली से उत्तर प्रदेश में एंट्री करने के बाद मेरठ, बिजनौर और कोटद्वार होते हुए लैंसडाउन पहुंच सकते हैं।

इतिहास

कुमाँऊ शब्द की उत्पत्ति कुर्मांचल से हुई है जिसका मतलब है कुर्मावतार (भगवान विष्णु का कछुआ रूपी अवतार) की धरती। कुमाँऊ मध्य हिमालय में स्थित है, इसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में काली नदी, पश्चिम में गढ‌वाल और दक्षिण में मैदानी भाग। इस क्षेत्र में मुख्यतया ‘कत्यूरी’ और ‘चंद’ राजवंश के वंशजों द्धारा राज्य किया गया। उन्होंने इस क्षेत्र में कई मंदिरों का भी निर्माण किया जो आजकल सैलानियों (टूरिस्ट) के आकर्षण का केन्द्र भी हैं। कुमाँऊ का पूर्व मध्ययुगीन इतिहास ‘कत्यूरी’ राजवंश का इतिहास ही है, जिन्होंने 7 वीं से 11 वीं शताब्दी तक राज्य किया। इनका राज्य कुमाँऊ, गढ‌वाल और पश्चिम नेपाल तक फैला हुआ था। अल्मोड‌ा शहर के नजदीक स्थित खुबसूरत जगह बैजनाथ इनकी राजधानी और कला का मुख्य केन्द्र था। इनके द्धारा भारी पत्थरों से निर्माण करवाये गये मंदिर वास्तुशिल्पीय कारीगरी की बेजोड‌ मिसाल थे। इन मंदिरों में से प्रमुख है ‘कटारमल का सूर्य मंदिर’ (अल्मोडा शहर के ठीक सामने, पूर्व के ओर की पहाड‌ी पर स्थित)। 900 साल पूराना ये मंदिर अस्त होते ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के वक्त बनवाया गया था।  कुमाँऊ में ‘कत्यूरी’ साम

इतिहास

जागर  का मतलब होता है जगाना।  उत्तराखण्ड  तथा  नेपाल  के पश्चिमी क्षेत्रोँ मेँ कुछ ग्राम देवताओँ की पूजा कि जाती है, जैसे  गंगनाथ ,  गोलु ,  भनरीया ,  काल्सण  आदि। बहुत देवताओँ को स्थानीय भाषा मेँ 'ग्राम देवता' कहा जाता है। ग्राम देवता का अर्थ गांव का देवता है। अत: उत्तराखण्ड और  डोटी  के लोग देवताओँ को जगाने हेतु जागर लगाते हैँ।  जागर मन्दिर अथवा घर मेँ कहीं भी किया जाता है। जागर "बाइसी" तथा "चौरास" दो प्रकार के होते हैँ. बाइसी बाईस दिनोँ तक जागर किया जाता है। कहीँ-कहीं दो दिन का जागर को भी बाईसी कहा जाता है। चौरास मुख्यतया चौधह दिन तक चलता है। पर कहिँ कहिँ चौरास को चार दिनोँ मेँ ही समाप्त किया जाता है। जागर मेँ "जगरीया" मुख्य पात्र होता है। जो  रामायण ,  महाभारत  आदी धार्मीक ग्रंथोँ की कहानीयोँ के साथ ही जीस देवता को जगाया जाना है उस देवता का चरित्र को स्थानीय भाषा मेँ वर्णन करता है। जगरीया हुड्का (हुडुक), ढोल तथा दमाउ बजाते हुए कहानी लगाता है। जगरीया के साथ मेँ दो तीन जने और रहते हैँ. जो जगरीया के साथ जागर गाते हैँ और कांसे की थाली को नगडे की

माँ नैना देवी

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी - देवता शिव के इस रौद्र - रुप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न क

माँ नंदा देवी

नंदा देवी  समूचे  गढ़वाल मंडल  और  कुमाऊं मंडल  और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। रुप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की ६ अंगभूता देवियों में नंदा भी एक है। नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शिवपुराण में वर्णित नंदा तीर्थ वास्तव में कूर्माचल ही है। शक्ति के रुप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नंदा के इस शक्ति रुप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है। कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोथिंग, चिल्ठा, सरमूल आदि में नंदा के मंदिर हैं। अनेक स्थानों पर नंदा के सम्मान में मेलों के रुप मे

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री

                                                                                              नित्यानंद स्वामी : कार्यकाल ;  9 नवम्बर 2000 -  29 अक्टूबर 2001 दल: भारतीय जनता पार्टी अवधि: 354  दिन विधानसभा चुनाव :  अस्तित्व में नहीं भगत सिंह कोश्यारी : कार्यकाल ;  30 अक्टूबर 2001 -  1 मार्च 2002 दल: भारतीय जनता पार्टी अवधि: 123  दिन विधानसभा चुनाव :  अस्तित्व में नहीं नारायण दत्त तिवारी : कार्यकाल ;  2 मार्च 2002 -  7 मार्च 2007 दल: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अवधि: 1832  दिन विधानसभा चुनाव :  प्रथम विधानसभा (2002–07) भुवन चंद्र खण्डूणी : कार्यकाल ;  8 मार्च 2007 -  23 जून 2009 दल: भारतीय जनता पार्टी अवधि: 839  दिन विधानसभा चुनाव :  द्वितीय विधानसभा (2007–12) रमेश पोखरियाल निशन्क : कार्यकाल ;  24 जून 2009 -  10 सितम्बर 2011 दल: भारतीय जनता पार्टी अवधि: 808  दिन विधानसभा चुनाव :  द्वितीय विधानसभा (2007–12) भुवन चन्द्र खण्डूणी: कार्यकाल ;  11 सितम्बर 2011 -  13 मार्च 2012 दल

उत्तराखण्डड वन विकास निगम

विज्ञप्ति : 24/Sept/2016 पद : Logging Officer, Assistant Logging Officer, Driver & Technical Manager. आवेदन की अंतिम तिथि : 13/Oct/2016 वेबसाइट : www.uafdc.in कुल पद : 189 आवेदन भेजने पता : उत्तराखण्ड वन विकास निगम,                                अरण्य विकास भवन,                                73-नेहरू रोड, देहरादून-248001

केदारनाथ त्रासदी : तबाही की आखो देखी कहानी

केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के बाद तुरंत किसी को भी समझ नहीं आया कि आखिर इतना बड़ा संकट किस वजह से आ गया। कयास तो बहुत लगाए गए, लेकिन पुख़्ता वजह किसी को पता नहीं थी। मैं घटना के कई हफ्तों बाद तक कई लोगों से इस बारे में बात करते रहा। आपदा के वक्त केदारनाथ में मौजूद रहे चश्मदीदों के अलावा देश के जाने माने इतिहासकार, वैज्ञानिक, भूगर्भशास्त्री और आपदा विशेषज्ञ सबके साथ मैंने बात की। आज हमारे पास कुछ तर्कपूर्ण विश्लेषण हैं, जो ये बताते हैं कि उस दिन कैसे ये सब हो गया, लेकिन बारीकियों में जाएं तो अब भी वैज्ञानिक और भूगर्भशास्त्री किसी एक नतीजे पर नहीं पहुंचे पाए हैं। जो भी विश्लेषण उपलब्ध हैं, उसे समझने के लिए उस दिन केदारनाथ में मची तबाही में क्या-क्या हुआ इसे क्रमवार जानना भी ज़रूरी है। केदारनाथ ही नहीं नदी के बहाव के साथ आगे बढ़ते हुए रामबाड़ा, गौरीकुंड, सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि और श्रीनगर जैसे इलाकों में भी कुदरत ने जमकर तबाही मचाई। इस पूरे इलाके में बरबादी तो केदारनाथ में आई बाढ़ से पहले ही शुरू हो गई थी। उत्तराखंड में कई जगह बड़े बड़े भूस्खलन हुए, रास्ते कट गए और पुल टूट

देवभूमि की प्रमुख नदियाँ

हिमालय पर्वतमाला को विश्व का उत्तम जल स्तम्भ कहा जाता है। हिमालय से पिघलते बर्फ से कई निरन्तर बहती नदियों का जन्म हुआ है जिन पर मानव जीवन निर्भर है। हिमालय में बर्फवारी अक्टूबर से अप्रैल तक होती है, जबकि जनवरी- फरवरी में अधिकतम बर्फ गिरती है। चौखम्भा शिखर के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर स्थित गंगोत्री हिमशिखर की 4000 मी0 ऊँचाई पर गौमुख से भगीरथी नदी का उद्गम हुआ है। भगीरथी  नदी की एक सहायक नदी भिलंगना का उद्गम टिहरी गढ़वाल में घुत्तू के उत्तर में खत्लिंग हिमशिखर से हुआ है। अलकनंदा  नदी का उद्गम एक छोटी नदी के रूप में बद्रीनाथ के उत्तर में हिमखण्ड से होता है जो चौखम्भा शिखर के आधार पर है। विष्णुगंगा  नदी का समायोजन अलकनंदा नदी में विष्णुप्रयाग में हुआ है। भ्युन्दर नदी  (ध्वल गंगा) जो अलकनंदा की सहायक नदी है, कामत हिमशिखर के पूर्व से निकली है। पिंडर  नदी पिंडारी हिमखण्ड से निकलती है तथा कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी में मिलती है। धौलीगंगा  नदी, जो अलकनंदा की सहायक नदी है, गढ़वाल और तिब्बत के बीच नीति दर्रे से निकली है। इसमें कई अन्य छोटी नदियॉं मिलती है जैसे - पर्ला, कामत, जैन्ती, अमृतगंगा

ग्रुप 'C' समूह 'ग' रिक्तियॉ 515

विज्ञापन : 22/सितम्बर/2016 पोस्ट ; JE/Stenographer/Technician/Auditor/Draftmens/etc. अंतिम तिथि : 31/अक्टूबर/2016 वेबसाइट : www.sssc.uk.gov.in ओनलाइन आवेदन : 26/सितम्बर/2016 शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि : 29/अक्टूबर/2016 आवेदन की अंतिम तिथि : 31/अक्टूबर/2016

तेरी खुद | Teri Khud by Neeraj Gosain

गढवाली कविता | Garhwali Poem's जब बि तेरी खुद मिथे आंदि , मेरी आख्यू मा य बसग्याल लांदी॥             न जाने कख हरचि छे तु ,             मिथे छोडि कि ।                         तेरु बिना मेरु ज्यू नि लगदु             वापिस आजा दोडि कि॥

देवभूमि में प्रथम

● प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी – कालू महरा (1857) ● प्रथम थलेसना अध्यक्ष – विपिन चन्द जोशी (1993-94) ● प्रथम नौसेना अध्यक्ष – देवेन्द्र जोशी ● प्रथम महिला आईएएस – ज्योतिराव पाण्डेय ● राज्य की प्रथम महिला मेयर – श्रीमती मनोरमा शर्मा ● प्रथम 'भारत रत्न' से सम्मानित – पं. गो​विन्द बल्लभ पंत (1957) ● प्रथम 'पद्म विभूषण' से सम्मानित – डॉ. घनानन्द पाण्डेय (1969-विज्ञान) ● प्रथम 'पद्म भूषण' से सम्मानित – कमलेन्दुमति शाह (1958-समाजसेवा) ● प्रथम 'पद्म श्री' से सम्मानित – छत्रपति जोशी (वायरलेस विशेषज्ञ) ● प्रथम 'परमवीर चक्र' प्राप्तकर्ता – मेजर सोमनाथ शर्मा (कुमाऊ रेजीमेन्ट) ● प्रथम 'अशोक चक्र' प्राप्तकर्ता – भवानीदत्त जोशी ● प्रथम 'विक्टोरिया क्रास' प्राप्तकर्ता – दरबान सिंह नेगी (1914) ● प्रथम 'राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार' विजेता – हरीश राणा (2003, उत्तरकाशी) ● प्रथम 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' विजेता – सुमित्रा नन्दन पन्त (1968 में चिदंबरा के लिए) ● प्रथम 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्तकर्ता – रस्किन ब्

उत्तराखण्ड सामान्य प्रश्नोत्तर

1. उत्तराखंड भारत का कौन सा राज्य है?  –  27वाँ  2. उत्तरांचल राज्य की स्थापना कब हुई? –  9 नवम्बर, 2000 को  3. अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना किस वर्ष हुई? –  1912 में  4. उत्तराखंड में कौन सा प्राचीन ऐतिहासिक स्थान जो ‘कत्यूरी’ राजाओं का मुख्य स्थान भी रहा? –  बागेश्वर  5. उत्तरांचल राज्य-निर्माण के समय केन्द्र में किस पार्टी की सरकार थी? –  राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन  6. गोरखों ने गढ़वाल पर किस वर्ष पूर्ण अधिकार किया? –  1804 में  7. टिहरी रियासत का भारत में विलय कब हुआ? –  1949 में  8. नेपाल नरेश अशोक चल्ल ने उत्तराखंड पर कब आक्रमण कर कुछ पर्वतीय क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था? –  1191 में   9. देहरादून से राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत गढ़वाली नामक साप्ताहिक का प्रकाशन कब शुरू हुआ था? –  1905 में  10. स्वतंत्रता आन्दोलन में सल्ट की भूमिका की सराहना करते हुए किसने इसे कुमाऊँ का बारदोली कहा था? –  महात्मा गांधी ने  11. उत्तरांचल राज्य की स्थायी राजधानी के लिए स्थान चयन हेतु कौन सा आयोग है? –  दीक्षित आयोग  12. उत्तरांचल विधानसभा में किस समुदाय से एक सदस्य नामित किया जाता है? –

माछी पाणी सी - नरेंद्र सिंह नेगी व मीना राणा

माछी पाणी सी ज्यू तेरु मेरु हो......ओ........ बिना तेरा नि जियेंदु , नि रयेंदु त्वे बिना। माछी पाणी सी ज्यू तेरु मेरु हो......ओ........ माछी पाणी सी........॥ द्यू बत्ति सि ज्यू तेरु मेरु हो.........ओ.......... बिना तेरा नि रयेंदु , नि रयेंदु त्वे बिना। द्यू बत्ति सि ज्यू तेरु मेरु हो...........ओ............... द्यू बत्ति सी. ............ ॥ दिन डूबी घार बोण , दिन हो........ओ........। दिन डूबी घार बोण , खुद खेवाई ल्ये घोर। फिर आख्यू बसग्याल. फिर उमली उमाल। फिर उमलि उमाल सुआ हो............ओ........ बिना तेरा नि थमेंदु , नि थमेंदू त्वे बिना .............. ॥ माछी पाणी सी ज्यू तेरु मेरु हो.........ओ........ माछी पाणी सी .............. ॥ रितु मोल्यारि की ओंदी रितु हो.......ओ.......... .. रितु मोल्यारि की ओंदी , फूल डाल्यू हेसोन्दी। भिन्डि बर्षू मा एशू...... मन बोदु मि बी हेसू मन बोदु मि बी हेसू , सुआ हो.........ओ..........। बिना तेरा नि हसेदू.... नि हसेंदू त्वे बिना॥ द्यू बत्ति सी ज्यू तेरु मेरु हो..........ओ..........